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शंभू दयाल वाजपेयी: क्या कोई पोर्टल भी किसी बड़े सामाजिक मुद्दे पर लोगों को उद्वेलित कर जन जागरण का प्रभावी माध्यम बन सकता है? कम से कम जागरण जंक्शन के मामले में तो कहा जा सकता है -हां। बरेली में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मामले में ऐसा हुआ। लोग रुहेलखंड के सब से बड़े और ऐतिहासिक सार्वजनिक बाग- गांधी उद्यान को बचाने के लिए निकल पड़े। जानकारी और हलचल हुई जागरण जंक्शन में बीती 6फरवरी को पोस्ट दिल की बात से । बाग को कुछ बड़े लोगों के बड़े खेल के तहत नगर निगम द्वारा व्यावसायिक उपयोग के लिए ठेके पर दे दिया गया था। इस से पर्यावरणीय सम्पदा व पशु-पक्षियों को होने वाली भारी क्षति की जानकारी लोगों को सर्व प्रथम इसी पोस्ट से हुई।
प्रभावशाली लोगों के सामने होने से शुरू में लोग विरोध में आगे आने से कतरा रहे थे। मीडिया वाले भी वीतरागी भाव मुद्रा में थे। लेकिन जागरण जंक्शन की बात धीरे धीरे एक दूसरे से बढ़ती फैलती मुखर जन विरोध में बदल गयी। मार्निग वाकर्स ने कमर कसी। धरना – प्रदर्शन शुरू हुए । प्रोफेसर, वकील डाक्टर,उद्यमी-व्यापारी सभी विरोध में बोल पड़े। हवा बनी तो स्वयं मेयर सुप्रिया ऐरन और उनके पति सांसद प्रवीण सिंह ऐरन भी बाग बचाने की मुहिम में शामिल हो गए। पर्यावरण प्रिय सांसद मेनका गांधी और उनकी स्थानीय टीम लगी। और मीडिया भी पिल पड़ा। चतुर्दिक दबाव के चलते बाग से ठेकेदार के तम्बू-कनात उखड़ गए। फिलहाल बाग बच गया पर निर्णायक लड़ाई अभी जारी है।
यह तो हुआ फालो अप। लेकिन इस कथा के कुछ निहितार्थ हैं। जैसे- लोगों को सार्वजनिक- सामाजिक मुद्दों पर आपस में केवल चर्चा कर के चुप नहीं बैठना चाहिए। आगे आना चाहिए। संगठित विरोध किया जाए तो गलत काम ,समाज विरोधी काम अपने आप कम होने लगेंगे। निजी हित प्रभावित होने पर तो हम मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं , सार्वजनिक मुद्दों पर हमारा रवैया वैसा नहीं होता। दृढ़ता पूर्वक सार्वजनिक हित के पक्ष में खड़े होने पर परेशानियां तो हो सकती हैं पर परिणाम प्राय: अच्छे ही होते हैं । समर्थन भी मिलता है।
अब फिर कुछ बात वृक्ष और बागों की। बागों में वृक्षों की प्रधानता होती है। औषधीय पादप- वनस्पतियां होती हैं। गुच्छ-गुल्म और फल-फूल होते हैं। थोड़ी सी देखरेख के बदले बाग दीर्घ काल तक बहुत कुछ देते ही रहते हैं। पौराणिक मान्यतायें तो मानव चेतना के उद्भव के साथ ही कल्पवृक्ष की परिकल्पना करती हैं। कल्प वृक्ष मोक्ष को छोड़ हर इच्छा पूरी करने वाला होता है। बाग प्राण वायु उत्सर्जन की बड़ी फैक्ट्री होने के साथ ही सम्पूर्ण स्वास्थ्य के सहज दाता हैं। किसी भी डाक्टर-वैद्य से ज्यादा। भारतीय चिंतन धारा में स्वास्थ्य को विशेष महत्व दिया गया है। कुमार संभव का उद्घोष है-
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् धर्मार्थकाममोक्षणामरोग्यं मूलकारणम् ।
चारों पुरुषार्थो – धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष – की सिद्धि के लिए आरोग्यता यानी स्वास्थ्य ही मुख्य कारण है। सभी धर्मो – कर्तव्य कर्मो का साधन शरीर ही है। शरीर रोग ग्रस्त अथवा बीमार होने पर कोई भी काम ठीक तरह से नहीं होता। धर्म, अर्थ साधन हैं तो काम और मोक्ष साध्य कहे जाते हैं।
स्वास्थ्य क्या है? स्वास्थ्य मायने शरीर मन, भाव सभी का ठीक होना। अनुशासन अहिंसाभाव ,मन ,वाणी और इन्द्रियों का संयम। स्वास्थ्य के मुख्य लक्षणों में है -अच्छी नींद आना,ठीक भूख लगना, पेट साफ रहना अच्छा रक्त प्रवाह ,मन शांत और तनाव मुक्त होना, चित्त प्रशन्न रहना। क्रोध कम होना और परिश्रम करने की प्रवत्ति होना।
अध्यात्म विज्ञानी मानते हैं कि मानव शरीर केवल भौतिक -स्थूल ही नहीं मनोमय शरीर भी होता है, आध्यात्मिक भी। बीमारियां भी तीन तरह की होती हैं-व्याधि (शारीरिक) आधि (मानसिक ) और उपाधि (भावात्मक )। स्वास्थ्य का मतलब केवल शरीर ही नहीं होता । केवल शरीर को ध्यान दे कर और मन- भावों की उपेक्षा कर स्वस्थ नहीं रहा जा सकता। शरीर, मन और भाव तीनों अनन्योश्रित हैं। शरीर अच्छा होने के साथ ही अच्छा मन और भाव धारा भी अच्छी हो तभी सम्पूर्णता में अच्छा स्वास्थ्य कहा जा सकता है। मनोचांचल्य, मानसिक तनाव आदि मानसिक बीमारियां हैं। क्रोध अहंकार छल कपट ,कामुकता लोभ आदि भाव चेतना संबंधी समस्यायें हैं। अग्रणी जैन संत आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के अनुसार लोभ का आवेश क्रोध से भी ज्यादा खतरनाक होता है। यह हृदय को दुर्बल बनाने में सबसे बड़ा कारण है।
वृक्ष-बाग सम्पूर्ण स्वास्थ्य में सहायक होते हैं। इन से मन,भावऔर शरीर तीनों पुष्टित और परिशुद्ध होते हैं। ये हमें अध्यात्म की ओर ले जाते हैं। अपने निहित स्वार्थो के लिए अगर हम लालच में वृक्षों का अंधाधुध कटान करते हैं, मनमानी खनिज दोहन करते हैं, पानी की बर्बादी करते हैं और वन्य जीवों का विनाश करते हैं तो प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएगा। बदले में हम अपने और अपनी आने वाली पीढि़यों के लिए भयानक संकट और समस्यायें पैदा कर लेंगे।
जरायुज – जेर( झिल्ली) के साथ पैदा होने वाले मनुष्य ,पशु आदि- की उद्भिज्ज पर निर्भरता होने से ही वृक्ष- अनाज देवता माने गए हैं। लोक जीवन में अभी भी दोनों के पूजन की परंपरा है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं –
यच्चापि सर्वभूतानांबीजंतदहमर्जुन
न तदस्ति बिनायत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ।
हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्रणियों का बीज मैं ही हूं। चर अचर कोई प्राणी ऐसा नहीं है जो मेरे बिना हो। यानी सब का मूल कारण -बीज मैं (भगवान )ही हूं। इस दृष्टि से भी बृक्ष हमारे अपने हैं। उनका संरक्षण- संवर्धन और संयम के साथ उपभोग ही अहिंसा है। उनके प्रति असंयम हिंसा। आओ, बृक्ष- बागों को बचायें और अधिक से अधिक पेड़ लगायें- लगवायें। प्रकृति के प्रति यही पूजा- आराधना है। वृक्ष ही ग्लोबल वॉर्मिंग और जहरीले वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को कम करने में सक्षम हैं। सार्वजनिक बागों को पार्क न बनायें। बाग (उद्यान) और में स्वरूपगत और गुणात्मक अंतर है जैसे ग्रंथ और किताब में। फिर , बृक्ष तो साधुओं की तरह परमार्थ ही करते हैं-
बृक्ष कबहुं नहिं फल भखैं ,नदी न संचय नीर |
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