Menu
blogid : 300 postid : 22

बाजार से व्‍यवस्‍था परिवर्तन

DIL KI BAAT
DIL KI BAAT
  • 29 Posts
  • 1765 Comments

बाबा के बहाने-1

राजीव दीक्षित स्वामी रामदेव

 के चंद्रगुप्त तो नहीं

हर कदम पे मंदिर ओ मस्जिद के बावजूद
दुनिया तमाम धन की पुजारी लगी हमें।
पता नहीं कब किस भले आदमी ने कहा था। पर, बात है पते की। अंधी दौड़। पैसा का प्रेमातिरेक समस्या भी है और समस्याओं की जड़ भी। परेशान सब हैं। जिनके पास है वे भी और जिनके पास नहीं है या कम है वे भी। किस लिए चाहिए पैसा? सुख के लिए। सुख है (?) उपभोग में। उपभोग की सामग्री-साधन जुटाने को चाहिए पैसा। यानी हमारी सोच पैसा प्रधान है। पैसे के लिए हर चीज का बाजारीकरण। बाजारीकरण साहित्य- कला का, धर्म-अध्यात्म का, खेल-राजनीति का, शिक्षा-स्वास्थ्य का, रिश्तों और भावों-विचारों का। परिणाम है अशांति, तनाव और संघर्ष। न व्यक्ति सुखी है न समाज। न साधनों की सीमा है न उपभोग की भूखी इच्छाओं का अंत।
देश-समाज के दिशा दाता मुख्यत: तीन शक्ति क्षेत्र होते हैं। लेखन-साहित्य (जिस में पत्रकारिता भी है), धार्मिक-आध्यात्मिक और सामाजिक-राजनीतिक। मौजूदा समय में तीनों क्षेत्रों का हाल जग जाहिर है। सब जगह बाजार के फंडे और बेचने- बिकने के हथकंडे। नतीजा सामने भी है- भरोसे का संकट। विश्वसनीयता और प्रामाणिकता का संकट। पब्लिक का नेता से विश्वास उठ चुका है। किसी की व्यापक सहज स्वीकार्यता नहीं रही। नेता क्षेत्र और पार्टियों के रहे, देश के नहीं। लेखन बिकने के बावजूद पाठकों से कटा सा है। साधु संत भी धूमिल-धूसरित हैं। सबकी नजरें सफलता की नई इबारत लिखने में लगीं हैं, सार्थकता के अध्याय बनने में नहीं। कुल मिला कर तीनों क्षेत्रों में अपेक्षित ऊष्मा-ऊर्जा और प्रकाश- प्रभाव का अभाव सा। ..एक निर्वात सा।
बाजार प्रचार का सारा खेल हो रहा है समाज सेवा के नाम पर। देश को आगे ले जाने के नाम पर। इसी के नाम पर नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं। गृह त्यागी संन्यासी पांच सितारा आश्रम बनाते हैं। इस मैदान के एक बड़े खिलाड़ी बन कर उभरे हैं स्वामी राम देव। पातंजलि योग पीठ के सहारे जमने के बाद अब वह चुनावी राजनीति के सहारे व्यवस्था परिवर्तन करना चाहते हैं। राजनीतिक – सामाजिक क्रांति का उन का घोषित एजेंडा है। क्रांति का रास्ता संसद होकर जाता है यह बताने के लिए योग गुरु अपने शिविरों में योग पर कम राजनीति पर ज्यादा बोलने लगे हैं। उन के प्रमुख प्रचारक राजीव दीक्षित भी घूम-घूम कर बड़े बड़े व्याख्यान दे रहे हैं। स्‍थानीय पातंजलि योग समितियां उनके लिए कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं। श्री दीक्षित हाल में बरेली- बदायूं का दौरा कर गए हैं। वह अच्‍छे वक्‍ता हैं। अपने तीन साढे तीन घंटे के भाषण में कई बार तालियां बजवा लेते हैं। वह लोगों को बताते हैं कि अंग्रेज लुटेरे थे और कैसे उन्‍हों ने सोने की चिडिया कहे जाने वाले भारत को गुलाम और गरीब बनाया। व्‍यवस्‍था बदले बिना बात नहीं बनेगी। बाबा रामदेव ने देश का खोया सम्‍मान  – गौरव वापस लौटाने का संकल्‍प लिया है। यह एक संन्‍यासी का संकल्‍प है। जब कोई संन्‍यासी संकल्‍प लेता है तो भगवान भी उसे पूरा करने को उतर आते हैं। लोगों को इसे पूरा करने को आगे आना चाहिए। वह जन समर्थन और आर्थिक सहयोग मांगने के साथ ही लोगों से भारत सेवा ट्रस्‍ट का सदस्‍य बनने का आह़वान  भी करते हैं।

श्री दीक्षित भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सचिव हैं। बाबा राम देव इस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। ट्रस्ट एक प्रकार से संसदीय राजनीति करने के लिए बाबा-परिवार का आनुषांगिक संगठन है। हाल में बाबा ने बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश आदि का तूफानी दौरा किया। उन्होंने उद्घाटित किया कि वह खुद चाणक्य की भूमिका निभायेंगे। चंद्रगुप्त भी ढ़ूंढ़ लिया है लेकिन उसका खुलासा तीन साल बाद (शायद चुनाव आने पर) करेंगे।
तो क्या राजीव दीक्षित नये चाणक्य के नये चंद्रगुप्त हैं? वह कहते हैं कि बीस साल की मेहनत और खोजबीन के बाद वह जान पाए हैं कि अंग्रेज लुटेरे थे। देश की दुर्दशा के पीछे उनका शोषक सिस्टम है। यह अलग बात है कि बीस साल पहले बाबा राम देव कहां और क्या थे। किसने किसे ढ़ूंढ़ा या पकड़ा।

दीक्षित के भाषण की मुख्य बातें-
* बाबा राम देव स्वयं न चुनाव लड़ेंगे और न राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री वगैरह बनेंगे। लेकिन रिमोट कंट्रोल और डंडा उनके हाथ में रहेगा।
* ट्रस्ट भी सीधे चुनाव नहीं लड़ेगा। वह इसके लिए ऐसे लोगों को सामने लाएगा जो ईमानदार, समझदार, संवेदनशील होंगे और देश भक्ति का संकल्प लेंगे।
* देश की गरीबी और बेरोजगारी अंग्रेजों की लूट से पैदा हुई। पौने दो सौ साल यहां की अतुल सम्पदा लूटने के बाद वे अपना लूट का सिस्टम यहां छोड़ गये। अब उसी से काले अंग्रेज (राजनीतिक) लूट रहे हैं।
* हर साल बीस लाख करोड़ रुपये का बजट गरीबी मिटाने को खर्च होता है, फिर भी गरीबी आबादी के अनुपात में साढ़े तीन गुना ज्यादा बढ़ रही है।
* अंग्रेजी को भी भगाना जरूरी है। बच्चे मातृ भाषा में पढ़ें। अंग्रेजी न अंर्तराष्ट्रीय भाषा है न कला, विज्ञान- प्रोद्यौगिकी की। दो सौ देशों में से मात्र 11 में अंग्रेजी बोली जाती है। विश्व की साढ़े छह सौ करोड़ की आबादी में सिर्फ 35 करोड़ ही अंग्रेजीभाषी हैं।
* यह तंत्र लूटने को बना था, विकास नहीं करता। विकास के लिए नया तंत्र जरूरी है। इसके लिए संसद में सांसद चाहिए। जब संन्यासी मांगने निकलेगा तो हो सकता है 545 सांसद मिल जाएं। सवा पांच हजार विधायक भी ट्रस्ट के हों।
* राष्ट्रपत, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के चुनाव सीधे पब्लिक से हों। नौकरियां हिन्दी या भारतीय भाषा जानने वालों को ही मिलें ।
* अंग्रेजों के बनाये तीन हजार से अधिक कानून बदले जाएं। 64 प्रकार के टैक्स खत्म हों। सब से पहले आय कर खत्म हो।
* देश के लोग बहुत ईमानदार हैं। टैक्स सिस्टम ने उन्हें बेईमान बनाया है। व्यवस्था बदल दो ईमानदारी आ जाएगी। आय कर खत्म होते ही काला धन के रूप में पचास लाख करोड़ एक झटके में बाहर निकल आएगा। विदेशी बैंकों में जमा, वह भी।
* केवल एक टैक्स लिया जाए। बैंकों से लेनदेन में एक बार दो प्रतिशत। इसी से सरकार को हर साल 24 लाख करोड़ आ जाएंगे जबकि अभी सभी प्रकार के करों से मात्र दस लाख करोड़ ही मिलते हैं।
* टैक्स खत्म होते ही ब्लैकमनी और बेईमानी खत्म हो जाएगी। विकास के रास्ते खुलेंगे।
* विदेशी उत्पादों- सौंदर्य सामग्री वगैरह का भी पूर्ण बहिष्कार हो ताकि देश का पैसा बाहर न जाए। कॉलगेट मंजन का इस्तेमाल कोई न करे।

अब कुछ विचार- सवाल : –
* राजनीतिक परिवर्तन बनाम व्यवस्था परिवर्तन के अपने इस संकल्पपूर्ति में योग गुरु स्वयं चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहते? गुड़ खाय गुलगुलों से परहेज। क्या इस के पीछे अपनी “छवि” को बचाए रखने की छिपी सर्तकता नहीं है? यह भय नहीं है कि काजल की कोठरी में जाने पर सयानापन नहीं चलेगा? एक रेख जरूर लगेगी। निष्कलुष नहीं रह सकेंगे।
* बात तो तब है जब पद में रह कर एक आदर्श छोड़ने की चुनौती स्वीकार करें। ऐसे लोगों को स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से प्रेरणा लेनी चाहिए जो गरीब परिवार से निकल शीर्ष राजनैतिक पदों पर पहुंचे। ईमानदारी, सादगी और नैतिकता का मंचस्थ प्रवचन नहीं किया अपितु यह कर दिखाया कि इसे जीवन के हर क्षेत्र में, राजनीति में भी अमली रूप दिया जा सकता है। इस बिन्दु पर वह बापू-जेपी से भी भारी साबित होते हैं।
* क्या भारत गरीब देश है? नहीं, हमारे यहां गरीबी नहीं आर्थिक असमानता है। गरीबी तो केवल लगती है। कहीं अथाह पैसा है तो बड़ी आबादी को पेट भरने के लिए जूझना पड़ता है। एक आईएएस के यहां छापे में तीन-चार करोड़ पड़े मिल जाते हैं। मंदिरों में एक झटके में नौ दस करोड़ तक चढ़ावा आ जाता है। ऐसे हजारों परिवार हैं जिनके किचन का रोजाना का इतना फालतू खर्चा है जिन से तीन-चार सौ गरीब मजदूर परिवारों की रोटी-पानी हो जाए।
झोपड़ी कतरा ए शबनम को तरस जाती है
जो घटा आती है महलों पे बरस जाती है ।
* क्या केवल बौद्धिक आधार पर व्यवस्था बदली जा सकती है? भावधारा बदले बिना कोरी विचार धारा कितनी प्रभावी होगी? मोहरे-चेहरे बदलना ही व्यवस्था परिवर्तन नहीं होता। वृत्ति बदले बिना, तंत्र बदलने पर भी, क्या काले अंग्रेजों की लूट बंद हो जाएगी? क्या उपभोग में संयम व संतुलन बिना शांति संभव है?

समस्याएं और जरूरतें:-
* विचारणीय बात है कि मुट्ठी भर अंग्रेज विश्व के सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न मुगल सम्राट के अनुग्रह की उंगली पकड़ कैसे कब्जा
करने में कामयाब हुए? अपनी ताकत से, चालाकी से या फिर हमारी कमजोरियों से? कमोबेश वही स्थितियां और समस्याएं आज भी हैं। मूलभूत जरूरतें भी। तब भी गरीबी का कारण भारी असमानता थी। पैसा रजवाड़ों -जमींदारों, श्रेष्ठियों और मंदिरों में सिमटा था। बाकी बड़ी आबादी भूखी – नंगी और अशिक्षित। आज भी शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार और सुरक्षा समान रूप से सर्व सुलभ नहीं है। पीने का साफ पानी तक नहीं। पैसे वालों को विशेष अवसर। गरीब रूखी सूखी से काम चलाये।
* भ्रष्टाचार और कामचोरी आज भी देश की सबसे बड़ी कमजोरी है।
* सरकारी दफ्तरों में आम आदमी की सुनवाई नहीं। आसानी से कहीं काम नहीं होता। कानून के शासन का प्रताप कितना प्रभावी है़? पैसे के लिए हर चीज में मिलावट। ईमान बेच कर कमाई।
* जब राज सत्ता कमजोर होती है तो जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद , भाषावाद आदि के सपोले ज्यादा सर उठाते हैं। देश समाज को पीछे ले जाने वाले ये प्रमुख कारक हैं। इतने वाद हैं लेकिन राष्ट्रवाद, समतावाद क्यों नहीं?
* नये मूल्य:- समस्यायें कम करनी हैं तो नये युग मूल्य अपनाने होंगे। ध्यान रखना होगा कि समय के हिसाब से मान्यतायें बदलना जरूरी है। प्रतिस्पर्धा के बजाय परस्पर सहयोग- सहनौभुनक्तु- की भावना विकसित करनी होगी। सामर्थ्‍यशाली-शक्तिशाली बनने से ज्यादा विवेकशील होने पर जोर देना होगा। पर्यावरण व पारिस्थितिकीय संतुलन पर समुचित ध्यान देना होगा। ध्यान देना होगा कि शांति, स्वतंत्रता, सुरक्षा, न्याय, विकास और प्रेम समाज को स्वस्थ गति देने वाली कडि़यां हैं। क्यों न ईशोपनिषद के त्याग के साथ भोग के  इस आह्वान को गले लगाएं-

तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध:`~
कस्य स्विद  धनम्।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh