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कर्फ्यू का १३वां दिन:
आओ, अब इंसान बनें। इंसानी फर्ज निभायें। अपनी बरेली को बचायें। उस बरेली को जिसे साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता है। जो नाथों-मंदिरों का नगर है, दरगाहों- खानकाहों का शहर है। जिसे देश दुनिया के बड़े हिस्से में आला हजरत की वजह से बरेली शरीफ के नाम से जाना जाता है।
12 दिन हो गए। बरेली का उल्लास..गति सब गायब है। लोग घरों में भी धीमे स्वर बात करते हैं। हंसी- कहकहे नहीं गूंजते। हर तरफ हवा में तैरते संशय, खौफ व अफवाहों के बादल। लोग रात में जग रहे हैं। छतों में जमा रहते हैं। दिन में गलियों-नुक्कड़ों में समूहों में। जानने की कोशिश में कि आखिर कब खत्म होगा कफ्र्यू। मासूम बच्चे परेशान हैं। होम एक्जाम हैं, पर स्कूल नहीं जा पा रहे। युवा हो रहे बच्चों के सामने कैरियर का सवाल है। कोचिंग – कालेज कैसे जाएं। बीमार-बूढ़े कराह रहे हैं। अस्पताल-दवाखाना बंद हैं। बड़ी तादाद है उन मेहनतकशों की जो रोज कुआं खोदते तब पानी पीते हैं। लगातार कफ्र्यू के चलते दो जून की रोटी का संकट है। महिलायें बेचैन हैं। किचन-घर कैसे चलाएं। दूध नहीं.. चाय नहीं.. सब्जी नहीं। बाजार – दुकानें बंद हैं। राजनीतिक नेता अपने नफा नुकसान के हिसाब में लगे हैं। किसी को एसेंबली दिख रही है तो कोई संसद तक के समीकरण साधना चाहता है। पुलिस-प्रशासन वाले हांफ रहे हैं। न सोने को मिल रहा है, न खाने को। हालात राजनीतिक स्वार्थो-हितों ने बिगाड़े या प्रशासनिक अफसरों की नासमझी ने, नुकसान तो केवल बरेली का है। न कुछ अफसर का बिगड़ेगा , न नेता का।
क्यों और कैसे बिगड़े हालातA कौन दोषी है यह अब सोचने का वक्त नहीं है। अभी तो विद्वेष के उठते धुएं को बिना समय गंवाये तुरंत बुझाने की जरूरत है। रहना यहीं है। बहुत बिगड़ने-बिगाड़ने के बाद सोचें-समझे तो क्या फायदा! चिंगारी शोला बनी तो बहुत कुछ जलाएगी। मकान-दुकान ही नहीं , दिलों को भी। आपसी विश्वास , सौहार्द और संबंधों को भी। बरेली की पहचान को भी। अब चूके, , देर की या सोचते रहे तो आने वाली पीढि़यां हमें माफ नहीं करेंगी। जो हुआ हो गया छोडि़ए, एक दूसरे से गिला छोडि़ए, मंजिलें जिसको सजदा करें, ऐसा एक नक्शपा छोडि़ए।
अब जरूरत एक नई मिसाल कायम करने की है। रचनात्मकता की नई इबारत लिखने की है । घर-घर से पुरजोर आवाज उठे; प्रेम के पैगाम की। हर समझदार शहरी के लिए यह समय है जागने और उठ कर खड़े होने का। धर्म गुरु- बुद्धिजीवी निकलें। डाक्टर वकील, शिक्षक, इंजीनियर,आर्किटेक्ट लेखक, शायर, पत्रकार, उद्यमी,व्यापारी निकलें। महिलायें निकलें। छात्र-छात्रायें निकलें। छोटे बडे़ सब निकलें। एक स्वर, एक मकसद-हमें बरेली को नफरत की आग से बचाना है। निकलें शांति सुरक्षा का पैगाम देने के लिए। एक ऐसा अमन का, विकास का मार्च जो देश में उदाहरण बने। बरेली के लोगों का बरेली के लोगों के लिए। दिखा दें कि संगीनें, बंदूकें नहीं, पुलिस, पीएसी, आरएफ या आर्मी नहीं शासन सरकार नहीं हम खुद ही अपने चमन को, अपने आशियाने को बचा और संवार सकते हैं। तीर ओ खंजर फेंक दो, अब प्यार की बातें करो,, अब जरा जंग के औजार बदल कर देखो।
यह समय है नासमझ लोगों को जज्बातों में बहने से रोकने का। विद्वेष-वैमनस्यता की आग भड़काने की कोशिशों में पानी डालने का। यह बताने का किसी गरीब का मकान दुकान जलाना कौन सा पुरुषार्थ है? यह समझाने का कि हम इंसान पहले हैं हिन्दू या मुसलमान बाद में। इंसान ही नहीं रहेंगे तो हिन्दू -मुस्लिम कैसे रह पाएंगे इंसानियत का अपना धर्म होता है- दया का, करुणा का, क्षमा का, प्रेम का। सबसे बड़ी बहादुरी है क्षमा-प्रेम। यही धर्म का आधार तत्व है। बदले की आग में जलना- जलाना नहीं। कहते हैं धर्म में लगे रहने वालों को देवता भी प्रणाम करते हैं। इसलिए संकल्प लें कि अब नफरत के नारे नहीं लगने देंगे। बदले की बातें नहीं होने देंगे। अब मोबाइलों में प्रेम-भाईचारे के ही संदेश जाएंगे। वैसे बरेली की प्रकृति साम्प्रदायिक नहीं है। यह न हिन्दुआनी है, न मुसलमानी। है तो सिर्फ इंसानी। यहां की मिट्टी में 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ की तपोस्थली अहिक्षत्र की महक है। पांचाल के वैदिक युगीन याज्ञवल्क्य, उद्दालक प्रभृति ऋषियों का प्रताप है। बौद्ध संन्यासियों का करुणा का संस्कार है। दरगाह-ए-आला हजरत और खानकाह-ए-नियाजिया समेत सभी सूफियों-औलियों का आशिर्वाद है।
यहां कई ऐसे परिवार हैं जो हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल हैं। कई मुस्लिम हैं जो हिन्दू महिलाओं से राखी बंधवाते और उन्हें नेग दुआयें देते हैं। इस्लाम की तो बुनियाद ही दया, प्रेम, करुणा और क्षमाशीलता पर है। कुरान शरीफ का हर शूरा .. अर्ररहमानिर्रहीम – अल्लाह अत्यंत करुणामय और दयावान का उदघोस करता है। अथर्व वेद का आह्वान आज भी प्रासांगिक है – सहृदयं सां मनस्यमविद्वेषं कृणोमि व:। तुम सहृदय व समान मन वाले बनो। परस्पर द्वेष मत करो।
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