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आसन -प्राणायाम क्या योग हैं ?

DIL KI BAAT
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बाबा के बहाने -2   <>  आज कल योग की बड़ी चर्चायें हैं। प्राणायाम ,अनुलोम विलोम, कपालभाति , शवासन वगैरह की धूम मची है। खाते पीते घरों के लोग अक्सर योग(कुछ के लिए योगा) और उसके फायदों पर धड़ल्ले से बोलते मिल जाएंगे। यत्र तत्र सर्वत्र सिखाने वाले भी। ऐसे में सवाल उठता है- योग है क्या? क्या कुछ क्रियाओं को ही योग कहेंगे ? संत कबीर दास तो कहते हैं-
तन को जोगी सब करैं ,मन को करै न कोय
सहजै सब सिधि पाइए , जो मन जोगी होय।
यानी मामला मन को रंगने- साधने का है। मन न रंगाये , रंगाये जोगी कपड़ा है – तो ज्यादा कुछ होने वाला नहीं। मन को, चेतना को योग युक्त कर लिया तो सभी सिद्धियां हस्तागत हैं। मुख्य आठ सिद्धियां मानी जाती हैं। ये हैं – अणिमा, महिमा गरिमा ,लघिमा, प्राप्ति ,प्राकाम्य ,ईशित्व और वशित्व।
योग के इस बढ़ी चर्चा व चलन का श्रेय लोग स्वामी रामदेव को देते हैं। कोई कोई टीवी की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताते हैं। ऐसे बहुत लोग हैं जो कहते हैं कि ऋषि पतंजलि के बाद स्वामी रामदेव ही इस विधा के सब से बड़े आचार्य हैं। जो भी हो ,इतना तय है कि 21वीं सदी में योग को सर्व चर्चित व बहु ग्राही बाबा रामदेवने ही बनाया है। उन्हों ने इस की जर्बदस्त मार्केटिंग -ब्रांडिंग की है। लोग कैरियर के रूप में भी योग को अपना रहे हैं। धड़ाधड़ योग शिक्षक प्रशिक्षक बन रहे हैं।
स्वामी रामदेव ने पातंजलि योग पीठ के जरिए योग शिक्षकों का देश भर में बड़ा नेटवर्क बना लिया है। मंडल से लेकर तहसीलों तक उनकी पातंजलि योग समितियां हैं। ये योग शिविरों के साथ ही सहयोगी संगठन भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने का भी काम कर रही हैं। अब गांवों तक यह संजाल फैलाने की योजना है। ट्रस्ट और योग शिक्षकों का यह नेटवर्क ही बाबा रामदेव की राजनीतिक परिवर्तन की महत्वाकांक्षा पूर्ति का मुख्य माध्यम है। इन्हीं के जरिए ही वह सामाजिक राजनीतिक क्रांति लाना चाहते हैं। देश में विकास की गंगा बहाना चाहते हैं। वह चतुर उद्यमी, बुद्धिमान व्यवसायी, परिश्रमी प्रबंधक और प्रचार पटु महत्वाकांक्षी संन्यासी हैं। करीब एक दर्जन संगठनों -कंपनियों के अगुवा -प्रशासक हैं। देश विदेश में बड़ी संख्या में लोग उन्हें गंभीरता से लेते हैं। उम्मीद के नये उजाले के रूप में देखते हैं।
लेकिन इसी के साथ कुछ सवालों पर भी विचार किया जाना जरूरी है।
– समग्रता में योग कितना सार्थक- उपयोगी है?
– योग किसके लिए है -अमीरो के लिए या गरीबों के लिए भी ?
– स्वयं स्वामी रामदेव के शिविरों से किस वर्ग के लोग लाभान्वित हुए या हो रहे हैं ?
– क्या आसन प्राणायाम की कुछ क्रियायें ही योग हैं?
योग शायद गांव ,गरीब, किसान मजदूर के लिए नहीं है। अन्यथा स्वामी रामदेव या अन्य योग गुरुओं के शिविर शहरों में ही क्यों होते? ये उच्च मध्यम और धनाढ्य वर्ग को ही केन्द्रित क्यों होते? जब कि सर्वाधिक स्वास्थ्यगत समस्यायें – अभाव अशिक्षा और पिछड़ापन के चलते गांव- गरीबों में ही हैं। शहरी शिविरों से तो प्राय: वही तबका फायदा उठाता है जो स्वास्थ्य के बारे में जागरूक है। जानता है और साधन सम्पन्न है। जिस गरीब के पास बच्चों को स्कूल में दाखिला व कापी किताब दिलाने के लिए पैसे नही , दवा ,मकान ,भोजन पानी की समस्याओं से परेशान – हैरान है वह क्या योग करेगा? कितने आसन , अनुलोम विलोम कर लेगा? गरीब ,किसान ,मजदूर (देश में इन्हीं की संख्या ज्यादा है) क्या जानें ब्लड शुगर लेबिल ,बीपी या कैलोरी-कोलेस्ट्राल ?
वह प्रोटीन, वसा, स्टार्च ,कार्बोहाइट्रेट आदि का अनुपात देख कर नहीं खाता पीता। पेट भरने और श्रम करने लायक बने रहने के लिए खाता पीता है। आसन- प्राणायाम निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं पर उन अमीरों के लिए जिनके पास इसके लिए समय है। जो आधुनिक जीवन शैली के दबावों तनावों से ग्रसित हैं। जरूरत से ज्यादा और बहुत रिच डाइट लेते रहने से जिन के मेदे खराब हैं। या ,शारीरिक श्रम न करने से जिन्हें गर्दन ,पीठ या कमर दर्द वगैरह रहता है। जिसे योग कहा जा रहा है वह भरे पेट वालों के लिए है,भूखे पेट वालों के लिए नहीं। यहां भी भूखे भजन न होय गोपाला। योग केवल आसन प्राणायाम के संदर्भो में समग्र समाधान नहीं है।
यानी योग कुछ शारीरिक क्रियायें ही योग नहीं है। ये तो योग का एक अंग है। लेकिन अधिकांश योग गुरू और प्रशिक्षक आसन प्रणायाम को ही योग के रूप में प्रस्तुत करते हैं। विधिवत किये जाने पर आसन प्राणायाम भी कई समस्याओं में लाभकारी हैं लेकिन ये दवाओं का विकल्प नहीं है। दूसरे , अगर आंतरिक-भाव जगत की शुद्धि न हो तो ये क्रियायें एक प्रकार से शारीरिक व्यायाम बन कर ही रह जाती हैं , योग नहीं। दवायें भी पथ्य परहेज आदि के संयोग से उपचार में सम्यकता लाती हैं।
योग तो जीवन में जीवन में परिपूर्णता लाने का एक साधन है। भारतीय दर्शनों में योग दर्शन भी हजारों साल पुराना है। निश्चित रूप से कह नहीं सकते कितना। ऋषि पातंजलि ने ( भगवान बुद्ध के बाद और ईसा से पहले) इसे 164 योग सूत्रों के रूप में संग्रहीत किया था। भारत से विश्व के विभिन्न देशों में कुछ परिवर्धित – संसोधित रूपों में फैला। छह दर्शनों में यह सब से छोटा है। यौगिक क्रियायें मुख्यत: वे साधन हैं जिन से व्यक्ति कैवल्य प्राप्त कर सकता है। आत्म स्वरूप में स्थि्त हो सकता है। पातंजलि योग सूत्रों में योग से मिलने वाली अद्भुत शक्तियों जिन्हें सिद्धियां भी कहा जाता है का वर्णन है। जैसे – योग से सारे प्राणियों की भाषा का ज्ञान , भूख प्यास , सर्दी गर्मी को जीत लेना,अंर्तधान होना, देश देशंातर का ज्ञान, पर काया में प्रवेश, आकाश में विचरना और इष्ट देव से मिलन आदि। आधनिक योग गुरू और योग शिक्षक क्या कह सकते हैं कि इनमें से कितनी उन्हें सिद्ध हैं?
योग में चित्त और भाव शोधन पर सर्वाधिक जोर दिया गया है। पतंजलि कहते हैं- योग: चित्त वृत्तिनिरोधनम्।योग चित्त वृत्तियों का निरोध है। इससे हम अपने शुद्ध रूप में स्थित हो जाते हैं यानी कैवल्य। यौगिक साधनों के अभ्यास और विषयों से वैराग्य से चित्त वृत्तियों का निरोध होता है। समाधि की सिद्धि होती है। पातंजलि इसके लिए आठ साधन बताते हैं। इसी से अष्टांग योग कहा जाता है। ये हैं- यम ,नियम, आसन,प्राणायाम, प्रत्याहार ,धारणा, ध्यान और समाधि। यम के पांच अंग हैं- अहिंसा ,सत्य ,आस्तेय ,ब्रम्हचर्य और अपरिग्रह। नियम में शौच (आंतरिक व बाहरी शुद्धता),संतोष , तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान या भक्ति। इन्द्रियों का बिषयों के साथ जुड़ाव न होने देना प्रत्याहार है। धारणा में मन को एकाग्र करना, नासिका के अग्रभाग आदि में चित्त को रोकने- टिकाने का अभ्यास है। धारणा की स्थिति में चित्त वृत्तियों की एकरूपता ध्यान है। प्राणायाम आसन से बैठ कर श्वास प्रश्वास की गति का विच्छेदन है। आसन का अलग महात्म्य है।
गीता में अंत: करण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करने को कहा गया है। अर्जुन के कल्याण के लिए भगवान कृष्ण छठे अध्याय में ध्यान योग के लिए बिछाये जाने वाले आसन और उस में बैठने की विधि बताते हैं।
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन:
नात्युच्छितं नातिनीचं चैलाजिन कुशोत्तोरम्।
शुद्ध भूमि पर जिस पर कुश मृगछाला या वस्त्र बिछे हों , जो न ज्यादा ऊंचा हो ,न ज्यादा नीचा अपने आसन को स्थिर स्थापन कर ।
तत्रैकाग्रं मन: कृत्वायत चित्तेन्द्रियक्रिय:
उपविश्यासने युद्जयाद्योगमात्म विशुद्धये
फिर उस आसन पर बैठ कर चित्त और इंद्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र कर अंत: करण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे। आसन पर पद्मासन ,सुखासन ,सिद्धासन आदि में जिस में सुख पूर्वक बैठ सके बैठे।
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर:
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिश्चानवलोकयन।
ध्यान में काया सिर और गले को सम सीधा रखे। कमर से लेकर ऊपर गले तक एक सूत में अचल रहे। सीधा सरल पत्थर की तरह निश्चल बैठा रहे। दस दिशाओं में कहीं न देखे। केवल नासिका के अग्रभाग को देखते हुए मन टिकाये। शरीर ,मन ,इंद्रियां आदि किसी की कोई क्रिया हलचल न हो। जितासन होने के लिए जानकार कम से कम तीन घंटे इस तरह बैठने का अभ्यास करने को कहते हैं। बैठने का अभ्यास सिद्ध होने पर मन प्राण स्वत: शांत हो जाते हैं।
युज्याद्योगमात्मविशुद्धये- गीता कहती है कि व्यक्ति अंत:करण शुद्धि के लिए ध्यानयोग का अभ्यास करे। केवल परमात्मा की प्राप्ति का उद्देश्य रखना ही अंत:करण की शुद्धि है। सांसारिक भोग पदार्थ , मान ,बड़ाई, यश-प्रतिष्ठा ,सुख सुविधा आदि की कामना अंत: करण की अशुद्धि है। जैनाचार्य महाप्रज्ञ जी कहते हैं- भाव शुद्धि तक पहुंचने के लिए ध्यान धारणा आदि सब साधन हैं। भाव शुद्धि से बुद्धि शुद्ध होती है। शुद्ध बुद्धि से विचार शुद्धि और विचार शुद्धि से मन शुद्धि होती है। मन शुद्धि से कर्म शुद्धि , कर्म शुद्धि से जीवन शुद्धि और जीवन की शुद्धि से जीवन की परिपूर्णता होती है।
क्या स्वामी राम देव का योग मन- बुद्धि शुद्ध करता है ? जीवन जीने की आवश्यक अंर्तदृष्टि देता है ? राग के साथ विराग की भी बात करता है ? जीवन जीने जीने का शऊर – कला नहीं आयी तो केवल बौद्धिक बातों की सार्थकता क्या? समग्रता के लिए स्वास्थ्य – शिक्षा के साथ ही आत्म विद्या भी जरूरी है। क्या स्वामी रामदेव को महर्षि दया नंद सरस्वती से सीख नहीं लेनी चाहिए जिन्हों ने चेतना का परिशोधन-परिवर्धन शिक्षा – समाज सुधार का अलख जगा कर किया ? पहले शिक्षा के जरिए दीर्घकालिक सामाजिक सुधारों की क्रांति लाई और इस तरीके से व्यवस्था परिवर्तन यानी अंग्रेजों को भगाने की आधार भूमि तैयार की।

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