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11 साल का अनशन, देश विचार करे !

DIL KI BAAT
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वह महिला है। सामाजिक कार्यकर्त्री और कवयित्री। महात्‍मा गांधी की अनुयायी। असम, नगालैंड और बर्मा की सीमाओं से घिरे छोटे से राज्‍य मणिपुर की। वही मनोहारी मणिपुर जिसे कभी पूर्वोत्तर भारत का स्विटजरलैण्‍ड कहा जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार जहां वनवासित पांडुपुत्रों में से महाबली भीम राक्षसी हिडिम्‍बा (जनजाति की संदरी) के प्रेमपाश में बंधे थे। अटल संकल्‍प शक्ति के चलते लोग उसे आयरन लेडी और स्‍थानीय भाषा में ‘मेगुम्‍बी’ ( फेयर लेडी) वग्‍ौरह कहते हैं। उस पर किताबें और कई लेख लिखे जा चुके हैं। उस पर आधारित वृत्तचित्र बन चुके हैं और नाट्य प्रस्‍तुतियां हो चुकी हैं। उसे दर्जनों पुरस्कार-सम्‍मान भी मिल चुके हैं। विश्‍व में सर्वाधिक लंबी भूख हड़ताल करने का अनोखा रिकार्ड उसके नाम है। अन्‍न-जल छोडे़ उसे पूरे 11 साल हो चुके हैं। इस दौरान वह सैकडों बार गिरफ्तार, रिहा और फिर गिरफ्तार हो चुकी है।

उसने पिछले शनिवार को अस्‍पताल में अपना 40वां जन्‍म दिन मनाया है। इंफाल के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल सांइसेज के उसी अस्‍पताल में, जहां वह वर्षों से विचाराधीन बंदी के रूप में पुलिस के कडे पहरे में निरुद्ध है। हाई सिक्‍योरिटी के तन्‍हाई वार्ड में, जहां समय काटने का उसका सहारा व संगी-साथी केवल दवाए और किताबें हैं। वह जन प्रतिरोध का सशक्‍त सत्‍याग्रही प्रतीक बन चुकी है। इसके बावजूद उसके आसपास न टीवी चैनलों की चमकती फ्लैश लाइटें हैं,  न पत्रकारों की भीड़। राष्‍ट्रीय मीडिया उसे लेकर प्राय: चुप है। कभी कभार नाक में लगी नली वाली उसके छोटी सी फोटो और और एकाध कालम की खबर दे देने तक सीमित। राष्ट्रवाद और अखंड भारत की बात करने वाले नेता-अभिनेता भी उसे लेकर चितिंत नहीं हैं।

सवाल यह है कि भारत सरकार की संवेदना को जगाए कौन ?


अरसे से अशांत मणिपुर और अधिकांश पूर्वोत्तर में वर्ष 1980 से सशस्‍त्र बल विशेषाधिकार कानून 1958 ( अफ्सा) लागू है। इसके तहत सेना व केन्‍द्रीय अर्ध सैन्‍य बलों को किसी को संज्ञेय अपराध करने या करने की आशंका पर बिना वारंट के भी गिरफ्तारी, बल प्रयोग करने या गोली मारने की छूट है। भारत सरकार की अनुमति के बिना इन बलों के कर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। जनसरोकारों के लिए बेमिसाल संघर्ष करने वाली बेमिसाल महिला मणिपुर से इसी विवादस्‍पद कानून को हटाने की मांग कर रही है। उसका कहना है कि यह कानून पूर्वोत्तर में जारी हिंसा के लिए उत्तरदायी है।

चतुर्थ श्रेणी कर्मी के घर 14 मार्च 1972 को जन्‍मी इरोम चानू शर्मिला एक मर्मांतक घटना को लेकर 2 नवम्‍बर 2002 से अनशनरत है। इसी दिन इंफाल घाटी के मालोम कस्‍बे में कथित रूप से बस अड्डे में बस की प्रतीक्षा में खडे दस नागरिक असम रायफल्‍स के जवानों द्वारा गोली से मार दिए गए थे। इनमें 18 साल का युवक भी था तो 62 साल की वृद्धा भी थी। इसी घटना से उद्वेलित 28 वर्षीय शर्मिला ने अफ्सा हटाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की। हालत बिगडने पर तीन दिन बाद पुलिस ने उसे आत्‍महत्‍या के प्रयास के अपराध में आईपीसी की धारा 309 के तहत गिरफ्तार कर लिया। तबसे उसकी गिरफ्तारी और रिहाई का अनवरत क्रम जारी है।

एम्‍बुलेंस में हर पखवारे पुलिस उसे अदालत ले जाती है। मजिस्‍ट्रेट उससे अनशन खत्‍म करने के बारे में पूछता है और वह दृढता से इन्कार करती है। उसे पुनः 15 दिन की न्‍यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है। उसे जीवित रखने के लिए जबरदस्‍ती नाक में पाइप लगा कर विटामिन वगैरह का घोल दिया जाता है। वह पिछले सालों से जमानत पर रिहा होने से भी इन्कार करती है, क्‍योंकि ऐसे में उसे भूख हड़ताल न करने के बारे में अदालत को लिख कर देना होगा और अनशन टूट जाएगा।


पांच -छह साल पहले  अदालती प्रकिया के तहत शर्मिला कुछ दिनों के लिए रिहा हुई थी। तब नई दिल्‍ली के राजघाट जाकर अपने आदर्श महात्‍मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्‍पांजलि अर्पित करने के बाद जंतर-मंतर में उसने अपनी मांग के समर्थन में विरोध प्रदर्शन किया था। वहां दो दिन बाद दिल्‍ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इंफाल के अस्‍पताल में शर्मिला से मिलने-जुलने पर कडी पाबंदी है। पुलिस महानिदेशक (जेल) की अनुमति के बिना कोई मिल नहीं सकता।

बहुचर्चित भ्रष्‍टाचार विरोधी आंदोलन में अन्‍ना हजारे ने चानू शर्मिला से पत्र लिखकर समर्थन मांगा था और वादा किया था कि उसके सत्‍याग्रह के समर्थन में वह अपनी टीम के दो सदस्‍यों को मणिपुर भेजेंगे। शर्मिला ने पूरे उत्‍साह से अन्‍ना-आंदोलन का समर्थन किया था, लेकिन अन्‍ना वादा भूल गए। कोई इंफाल नहीं गया। सवाल है कि क्‍या दिल्‍ली, यूपी, बिहार, पंजाब ही भारत है ? क्‍या पूरी संवेदना-सहानुभूति व समानता जताए और सहयोग किए बिना सामरिक दृष्टि से महत्‍वपूर्ण पूर्वोत्तर राज्‍यों के लोगों को मुख्‍य राष्‍ट्रीय धारा से जोड़ा जा सकता है? आखिर क्या हश्र तय कर रखा है लोकतांत्रिक प्रणाली के इस महान देश ने चानू शर्मिला के लिए? क्या? क्या??  चानू शर्मिला का इतना लंबा अनशन… उफ देश शर्म करे…।

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